Wednesday, January 29, 2014

गूँगा देश

मैंने कभी नहीं देखा है
हँसते हुए चाँद को
खिलते हुए गुलाब को।

हाँ, मैंने जरूर देखा है
तपती हुई रोटी को
जलती हुई आग को
हथौड़ों से जूझते हाथों को
बरतनों से झगड़ते कंगनों को
बिना पेट के आदमी को।

विश्वास न हो तो
पूछो मेरे देश को
वह भी एक गवाह है

हाँ, फर्क केवल इतना है
मैं बोल रहा हूँ
और वह गूँगा है।

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