सूरज से उगती हुई
किरणों के बीच
चमकता हुआ
तुम्हारा चेहरा
और
तुम्हारी आँखों से
ओझल होती
होंठों पर थमती
हर एक सुनहरी किरण
बताती है
जीने का अर्थ।
मैं समझता था
जीवन
संघर्षों से जूझता
यातनाओं का घेरा है
जिसमें
जीवन के अंत्यास्त
तक
हर पड़ाव पर
एक धोखा है
जिसे पार करते-करते
मैं थक गया हूँ।
सामाजिक व्यवस्था
की
घुटन में
तुमने भी सही है
संघर्षों की मार।
सामाजिक घुटन से
हर आदमी
तनहा होता है।
आत्म-सम्मान से
ध्येय की कगार पर
पहुँचने की
तुम्हारी तड़प
जागृत कर देती है
मेरा सोया हुआ
जमीर।
कुंठा और स्वार्थ
से पनपे
समाज से जुझती
तुम्हारी आँखों की
चमक देखकर
मुझे लगा -
मानो जैसे मैंने
पाया है
एक नया सूरज
जो अपनी
किरणें बिखेर कर
बता रहा हो
जीने का नया अर्थ।
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