किरण वाडीवकर
कवी,लेखक,पत्रकार
Wednesday, January 29, 2014
देहरी पर रुकी रात
उसने पहले गोली चलायी
फिर संगीन से
उसके आँसू पोंछे
स्वतंत्रता चुपचाप
रोती रही
और
देहरी पर रुकी रात
सबेरा खोजती रही।
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