किरण वाडीवकर
कवी,लेखक,पत्रकार
Thursday, January 2, 2014
घुटन
शहर में ओले पड़े
जाम पिये लोग पड़े
अपने ही कमरों में।
दरवाजे तावदान
दीवारें बंद पड़ीं
धुआँ-धुआँ घुटन से
लोग पड़े
अपने ही कमरों में।
पेड़ों में धूप अटकी
मुँह बायं आँखें फाड़े
लोग खड़े
अपने ही आँगन में।
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