मैंने
तुमसे किया है
एक कविता का वादा
कविता जो
भीड़ में भागते हुए
उस अभागे
आदमी जैसी है
जो सुबह से शाम तक
रोटी का ख्वाब
देखता है
और शाम को
बिस्तर की आड़
खोजता है।
कविता, जो कि
खोखली राजनीति के
शिकार की औलाद है
जिसे प्रसूत करने
में
मैं वेदना की उस
सीमा के पार जाता
हूँ
जो शायद ही
कोई माँ
अपने बच्चे को
जनमते वक्त
पार करती हो।
कविता, जो कि
यातना सहने की
एक प्रक्रिया है,
यातना सहने की आदत
होती है,
हर इंसान में
मैंने भी सही है
तुमने भी सही है।
यातना...
एक रिश्ता बन चुकी
है
तुम्हारे और मेरे
बीच का
जो
समाज के उन ढकोसलों
से
टूट नहीं सकता
जो बरकरार है
उस स्थितप्रज्ञ
समुद्र जैसा
जो झकझोरते
तूफान की मार से भी
अपनी जमीन
नहीं छोड़ता।
यातना, जो कि
हर वक्त जनमती है
एक कविता
उसी कविता का वादा
है
जो मैंने
तुमसे किया है।
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