Wednesday, January 29, 2014

स्वप्न


स्वप्न जिसके
पूरे होने की
गुंजाइश नहीं होती
फिर भी आदमी
उसकी फिराक में
जी-जान से
दौड़ जाता है।

अपना कलेजा
मुँह तक आने के बाद
पाता है सूने खंडहर में
लटके चमगादड़-सी
उसकी आशा
जो उसके स्वप्न पर
हँसा करती है।

इन्सान
जिसे आदत है
स्वप्न में जीने की
अतीत-वर्तमान
और भविष्य के बीच
लटकता आदमी
अपने भविष्य के
सपनों में
खोया रहता है।

अतीत
जो कि उसका
टूटा कलेजा है
उसे याद करते-करते
वह झुक जाता है
अतीत जब भी
उसे याद आता है
वह आँसुओं के बदले
खून रोता है।

वह वर्तमान में
जीना नहीं चाहता
वह पिरो देता है
अपने-आपको
भविष्य के सपनों में
जो पूरे नहीं होते
फिर भी वह
आखिरी दम तक
जीते ही जाता है
जीते ही जाता है।

No comments:

Post a Comment