एक फटेहाल आदमी
किसी नेता का
अनुयायी
अपनी हकीकत बयाँ कर
रहा था -
‘‘मैं देश-प्रेम से ओत-प्रोत
नेता बनने के लालच
में
फटेहाली में पनप
रहा हूँ।
‘‘नेता बनना
जो कि एक
बनावटी प्रक्रिया
है
मैं गुजर चुका हूँ
उसके पहले दौर से।
‘‘हाथ में झंडे की निशानी लिये
मोर्चे की आखिरी
कतार से
खिसकते-खिसकते
जब मैं नेता के पास
पहुँचा
अपनी आँखों को
मिचमिचाते
उसने मुझे चुनकर
अनुयायी करार दिया
और
उपदेश के नाम पर
रट गया राजनीति के
चार पाठ।
राजनीति-जिसको
मैंने
करीब से देखा है
नेता, उसी नेपथ्य का
एक अभिनेता है।
उसने मेरी
इस्तेमाली पर
छोड़ी नहीं कभी कोई
कसर
कार्यकर्ताओं की
भीड़ में
अनायास ही मैं करते
रहा
नेता की नकल।
जब उसने देखी
मेरी आँखों में
देश-प्रेम से
ओत-प्रोत
नेता बनने की झलक
झुँझलाकर दबोच ली
मेरी गर्दन
मानो जैसे
उपयोगिता के बाद
घिसा हुआ कंडोम
लगने लगा हो
बेवजह का बोझ।’’
हिंदुस्तानी आदर्श
नेता
बनने की चाह में
फटेहाल बने
उस आदमी की आँखों
में
झलकता क्रोध देखकर
वीरान क्षितिज में
खोयी
मेरी आँखें
खोजने लगीं
सही नेता बनने की
सही परिभाषा।
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