Thursday, January 2, 2014

माँ



आसमान की ऊँचाई
और
माँ के प्यार की गहराई
नाप न सकना
इन्सान की नाकामयाबी का
एक आदर्श नमूना है।

‘‘मैया’’ जिसका ‘‘मैं’’
अंतर्भूत है हर एक व्यक्ति में
उसके रोम-रोम में
फिर भी वह ढूँढ़ नहीं पाया
अपने हाड़-माँस में
माँ का अस्तित्व।

माँ, जो कि अपने गर्भ में
पले उस जीव के
अस्तित्व और भविष्य के लिए
उजाड़ देती है अपनी कोख।

और वह
अपने इस जन्म की प्रक्रिया को
एक घटना समझकर
भूल जाता है।

माँ, जिसको वह
समझने लगता है अस्तित्वहीन
और भूल जाता है कि
उसे तराशने में
माँ ने खटाया
हर एक दिन।

वह बाँधता है
अपना एक नया परिवार
फिर भी माँ
जो कि सृजनशील प्रेम का
मूर्तिमंत उदाहरण है
करते ही जाती है
प्रेम की बरसात
अपने अंतिम-संस्कार तक।

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