Thursday, January 2, 2014

मुट्ठियाँ तनने तक...!

अपने मुट्ठियाँ बाँधे
सड़क के उस पार
कुछ लोग
मेरी राह जोहते खड़े हैं
उनके बैनर पर लिखा
घोष वाक्य
मैं पढ़ पा रहा हूँ -
‘‘मुक्तिबोध की ओरांग-ओटांग
और धूमिल की मोचीराम की
भाषा समझने के लिए
इस मुल्क को
फिर एक बार
आजाद होना पड़ेगा।’’
और मैं...
मुट्ठियाँ तनने तक
इंतजार कर रहा हूँ।

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