अपने मुट्ठियाँ
बाँधे
सड़क के उस पार
कुछ लोग
मेरी राह जोहते खड़े
हैं
उनके बैनर पर लिखा
घोष वाक्य
मैं पढ़ पा रहा हूँ
-
‘‘मुक्तिबोध की ओरांग-ओटांग
और धूमिल की
मोचीराम की
भाषा समझने के लिए
इस मुल्क को
फिर एक बार
आजाद होना पड़ेगा।’’
और मैं...
मुट्ठियाँ तनने तक
इंतजार कर रहा हूँ।
No comments:
Post a Comment