Wednesday, January 29, 2014

फाँसी पर

रात यूँ तो गुजर जाती है
अरमानों की सोच में
पर सुबह होते ही
नजर आती है
बुलबुलों की तरह
तैरती हुई हजार बातें
जो उल्काओं जैसी
टूट पड़ती हैं आसमान से
पानी और पानी
यानी कि सिर्फ पानी
और
उस शून्य में
अरमान की ताक लगाये
भोर की आस लगाये
फाँसी पर लटकता हुआ
आदमी ही आदमी
नजर आता है।

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